️श्राद्धपक्ष का महत्व हमारे धर्मग्रंथों में अत्यंत विस्तार से वर्णित है। श्राद्ध केवल एक संस्कार नहीं है बल्कि यह ऋणमोचन (पितृऋण से मुक्ति) का प्रमुख माध्यम माना गया है। यदि कोई हिन्दू जानबूझकर या लापरवाही से श्राद्ध नहीं करता, तो शास्त्रों में उसके कई प्रकार के हानिकारक परिणाम बताए गए हैं।*
*️धर्मग्रंथों के सन्दर्भ*
*️1. मनुस्मृति (3/203)*
*️”श्राद्धकर्म विहीनस्य नास्ति तस्य सुखं क्वचित्।*
*न चास्य लभते पुत्रः पितृलोकं सनातनम्॥”*
*️अर्थ: जो व्यक्ति श्राद्ध नहीं करता, उसे न इस लोक में सुख मिलता है, न ही उसके पूर्वज पितृलोक में शांति पाते हैं। उसके पुत्र आदि भी पितृलोक की कृपा से वंचित हो जाते हैं।*
*️2. गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 5-10)*
*️”यः श्राद्धं न करोत्यत्र पितॄणां तु निराकृतिः।*
*तस्य कुलं च नश्येत स पापी नरकं व्रजेत्॥”*
*️अर्थ: जो व्यक्ति श्राद्ध नहीं करता, वह अपने पितरों का अपमान करता है। उसका कुल धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है और उसे मृत्यु के बाद नरक प्राप्त होता है।*
*️3. विष्णु पुराण (3/16/37)*
*️”श्राद्धकर्मविहीनस्य पुत्रपौत्रादयः क्षयम्।*
*धर्मार्थकाममोक्षाणां न सिध्यति कदाचन॥”*
*️अर्थ: जो श्राद्ध नहीं करता, उसके वंश में पुत्र-पौत्र का नाश होता है और उसके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों पुरुषार्थ बाधित हो जाते हैं।*
*️4. महाभारत (अनुशासन पर्व, अध्याय 91)*
*️”श्राद्धं न कुरुते मूढः पितृद्रोहसमन्वितः।*
*स जीवन्नपि पापिष्ठः प्रेत्य चान्धतमं व्रजेत्॥”*
*️अर्थ: जो मूर्ख श्राद्ध नहीं करता, वह जीवित रहते हुए भी पापी कहलाता है और मृत्यु के बाद अंधतम (भयानक नरक) को प्राप्त होता है।*
*️श्राद्ध न करने से होने वाले नुकसान*
*️1. पितृदोष उत्पन्न होता है – संतान सुख में बाधा, विवाह में रुकावट, रोग, आर्थिक हानि।*
*️2. वंश का क्षय – शास्त्र कहते हैं कि श्राद्ध न करने वाले के कुल में धीरे-धीरे संतान और समृद्धि कम होती है।*
*️3. पितरों की असंतुष्टि – पितर भोजन और जल के लिए श्राद्धकर्म की प्रतीक्षा करते हैं। जब उन्हें तृप्ति नहीं मिलती तो वे वंशजों को दुःख देते हैं।*
*️4. संसार और परलोक दोनों में दुःख – श्राद्ध से पितर संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं, परन्तु श्राद्ध न करने से उनका आशीर्वाद नहीं मिलता।*
*️5. नरक की प्राप्ति – अनेक पुराणों में स्पष्ट कहा गया है कि श्राद्ध न करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद नरक भोगता है।*
*️श्राद्ध केवल एक “कर्मकांड” नहीं है बल्कि यह पितृऋण से मुक्ति और वंश की उन्नति का साधन है। धर्मग्रंथों के अनुसार यदि कोई हिन्दू श्राद्ध नहीं करता तो—*
*️उसके पितर अशांत रहते हैं,*
*️वंशजों पर विपत्ति आती है, और मृत्यु के बाद उसे भी पितृऋण के कारण कष्ट भोगना पड़ता है।*
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*️अगर कोई हिन्दू श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करता तो क्या हानि है।*
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*️श्राद्धपक्ष का महत्व हमारे धर्मग्रंथों में अत्यंत विस्तार से वर्णित है। श्राद्ध केवल एक संस्कार नहीं है बल्कि यह ऋणमोचन (पितृऋण से मुक्ति) का प्रमुख माध्यम माना गया है। यदि कोई हिन्दू जानबूझकर या लापरवाही से श्राद्ध नहीं करता, तो शास्त्रों में उसके कई प्रकार के हानिकारक परिणाम बताए गए हैं।*
*️धर्मग्रंथों के सन्दर्भ*
*️1. मनुस्मृति (3/203)*
*️”श्राद्धकर्म विहीनस्य नास्ति तस्य सुखं क्वचित्।*
*न चास्य लभते पुत्रः पितृलोकं सनातनम्॥”*
*️अर्थ: जो व्यक्ति श्राद्ध नहीं करता, उसे न इस लोक में सुख मिलता है, न ही उसके पूर्वज पितृलोक में शांति पाते हैं। उसके पुत्र आदि भी पितृलोक की कृपा से वंचित हो जाते हैं।*
*️2. गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 5-10)*
*️”यः श्राद्धं न करोत्यत्र पितॄणां तु निराकृतिः।*
*तस्य कुलं च नश्येत स पापी नरकं व्रजेत्॥”*
*️अर्थ: जो व्यक्ति श्राद्ध नहीं करता, वह अपने पितरों का अपमान करता है। उसका कुल धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है और उसे मृत्यु के बाद नरक प्राप्त होता है।*
*️3. विष्णु पुराण (3/16/37)*
*️”श्राद्धकर्मविहीनस्य पुत्रपौत्रादयः क्षयम्।*
*धर्मार्थकाममोक्षाणां न सिध्यति कदाचन॥”*
*️अर्थ: जो श्राद्ध नहीं करता, उसके वंश में पुत्र-पौत्र का नाश होता है और उसके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों पुरुषार्थ बाधित हो जाते हैं।*
*️4. महाभारत (अनुशासन पर्व, अध्याय 91)*
*️”श्राद्धं न कुरुते मूढः पितृद्रोहसमन्वितः।*
*स जीवन्नपि पापिष्ठः प्रेत्य चान्धतमं व्रजेत्॥”*
*️अर्थ: जो मूर्ख श्राद्ध नहीं करता, वह जीवित रहते हुए भी पापी कहलाता है और मृत्यु के बाद अंधतम (भयानक नरक) को प्राप्त होता है।*
*️श्राद्ध न करने से होने वाले नुकसान*
*️1. पितृदोष उत्पन्न होता है – संतान सुख में बाधा, विवाह में रुकावट, रोग, आर्थिक हानि।*
*️2. वंश का क्षय – शास्त्र कहते हैं कि श्राद्ध न करने वाले के कुल में धीरे-धीरे संतान और समृद्धि कम होती है।*
*️3. पितरों की असंतुष्टि – पितर भोजन और जल के लिए श्राद्धकर्म की प्रतीक्षा करते हैं। जब उन्हें तृप्ति नहीं मिलती तो वे वंशजों को दुःख देते हैं।*
*️4. संसार और परलोक दोनों में दुःख – श्राद्ध से पितर संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं, परन्तु श्राद्ध न करने से उनका आशीर्वाद नहीं मिलता।*
*️5. नरक की प्राप्ति – अनेक पुराणों में स्पष्ट कहा गया है कि श्राद्ध न करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद नरक भोगता है।*
*️श्राद्ध केवल एक “कर्मकांड” नहीं है बल्कि यह पितृऋण से मुक्ति और वंश की उन्नति का साधन है। धर्मग्रंथों के अनुसार यदि कोई हिन्दू श्राद्ध नहीं करता तो—*
*️उसके पितर अशांत रहते हैं,*
*️वंशजों पर विपत्ति आती है, और मृत्यु के बाद उसे भी पितृऋण के कारण कष्ट भोगना पड़ता है।*
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